Monday, June 21, 2010

Shani in 7th House

7वें भाव के शनि के शुभ-अशुभ फल

 

शुभ फल जन्म कुंडली के सातवें भाव अर्थात खाना नं. 7 में अन्य ग्रहों के योगायोग में यदि शनि शुभ हो तो जातक को निम्नलिखित शुभ फल प्राप्त होते हैं।

1. अत्यंत चुस्त एवं फुर्तीला होता है।
2. राजनीति में जाने से लाभ होता है।
3. जातक नेक सलाहकार होता है।
4. आप अल्प बुद्धिमान होते हुए भी राज्य से सम्मानित होंगे।
5. शनि और मंगल दोनों ही खाना नं. 7 में बैठे हों तो बेईमानी से धन प्राप्त कर लक्ष्मीवान बन सकते हैं।
6. बना हुआ मकान खरीदेंगे।
7. आपके पास चाहें लड़कियाँ कितनी भी हों, विवाह में परेशानी नहीं होगी।
8. मकान यदि पीलर डालकर बनाया जाए तो अत्यंत शुभ फलों की प्राप्ति होगी।
9. अग्नि राशि का शनि हो तो पत्नी मनमोहक सुंदर होगी।
10. जल राशि का शनि हो तो पत्नी सभी प्रकार से अच्छी मिलती है।

अशुभ फ
सात नं. में बैठा शनि अन्य ग्रहों के संबंध से अशुभ हो तो विपदाओं का सामना होगा।


1. यदि आप शराब पीएँगे तो बर्बाद हो जाएँगे।
2. खाना नं. 7 में शनि हो और बुध शत्रु ग्रह खाना नं. 3, 7-10 में हो तो जातक के पिता का धन बर्बाद होता है।
3. आपकी शादी 22 साल के पहले हो गई होगी तो नेत्र रोग हो सकता है।

अशुभ फल निवार
1. काली गाय की सेवा करें।
2. पराई स्त्री का आदर-सम्मान करें।
3. मांस-मदिरा का सेवन न करें।
4. अदालत में जाते समय सुंदर पुष्प जेब में रखें।
5. शनिवार के दिन मीठा गुड़ पीपल को दें। जल दान

Janam Patrika Kyaa Kehti Hain

जन्म पत्रिका क्या कहती है?

 

जन्म पत्रिका बनाना सीखने से पहले हमें जान लेना होगा कि जन्म पत्रिका क्या कहती है व इससे क्या जाना जा सकता है? जन्म पत्रिका वह है, जिसमें जन्म के समय किन ग्रहों की स्थिति किस प्रकार थी व कौन-सी लग्न जन्म के समय थी। जन्म पत्रिका में बारह खाने होते हैं, जो इस प्रकार हैं-

उपरोक्त कुंडली में प्रथम भाव लिया है, उसमें जो भी नंबर हो उसे जन्म लग्न कहते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि उस भाव में 1 नंबर है तो मेष लग्न होगा, उसी प्रकार 2 नंबर को वृषभ, 3 नंबर को मिथुन, 4 को कर्क, 5 को सिंह, 6 को कन्या, 7 को तुला, 8 को वृश्चिक, 9 को धनु, 10 को मकर, 11 को कुंभ व 12 नंबर को मीन लग्न कहेंगे। इसी प्रकार पहले घर को प्रथम भाव कहा जाएगा, इसे लग्न भी कहते हैं।

जन्म पत्रिका के अलग-अलग भावों से हमें अलग-अलग जानकारी मिलती है, इसे हम निम्न प्रकार जानेंगे-

प्रथम भाव से हमें शारीरिक आकृति, स्वभाव, वर्ण चिन्ह, व्यक्तित्व, चरित्र, मुख, गुण व अवगुण, प्रारंभिक जीवन विचार, यश, सुख-दुख, नेतृत्व शक्ति, व्यक्तित्व, मुख का ऊपरी भाग, जीवन के संबंध में जानकारी मिलती है। इस भाव से जनस्वास्थ्य, मंत्रिमंडल की परिस्थितियों पर भी विचार जाना जा सकता है।

द्वितीय भाव से हमें कुटुंब के लोगों के बारे में, वाणी विचार, धन की बचत, सौभाग्य, लाभ-हानि, आभूषण, दृष्टि, दाहिनी आँख, स्मरण शक्ति, नाक, ठुड्डी, दाँत, स्त्री की मृत्यु, कला, सुख, गला, कान, मृत्यु का कारण एवं राष्ट्रीय विचार में राजस्व, जनसाधारण की आर्थिक दशा, आयात एवं वाणिज्य-व्यवसाय आदि के बारे में जाना जा सकता है। इस भाव से कैद यानी राजदंड भी देखा जाता है।

तृतीय भाव से भाई, पराक्रम, साहस, मित्रों से संबंध, साझेदारी, संचार-माध्यम, स्वर, संगीत, लेखन कार्य, वक्ष स्थल, फेफड़े, भुजाएँ, बंधु-बांधव। राष्ट्रीय ज्योतिष के लिए रेल, वायुयान, पत्र-पत्रिकाएँ, पत्र व्यवहार, निकटतम देशों की हलचल आदि के बारे में जाना जाता है।

चतुर्थ भाव में माता, स्वयं का मकान, पारिवारिक स्थिति, भूमि, वाहन सुख, पैतृक संपत्ति, मातृभूमि, जनता से संबंधित कार्य, कुर्सी, कुआँ, दूध, तालाब, गुप्त कोष, उदर, छाती, राष्ट्रीय ज्योतिष हेतु शिक्षण संस्थाएँ, कॉलेज, स्कूल, कृषि, जमीन, सर्वसाधारण की प्रसन्नता एवं जनता से संबंधित कार्य एवं स्थानीय राजनीति, जनता के बीच पहचान- यह सब देखा जाता है।

पंचम भाव में विद्या, विवेक, लेखन, मनोरंजन, संतान, मंत्र-तंत्र, प्रेम, सट्टा, लॉटरी, अकस्मात धन लाभ, पूर्वजन्म, गर्भाशय, मूत्राशय, पीठ, प्रशासकीय क्षमता, आय भी जानी जाती है क्योंकि यहाँ से कोई भी ग्रह सप्तम दृष्टि से आय भाव को देखता है।

षष्ठ भाव इस भाव से शत्रु, रोग, ऋण, विघ्न-बाधा, भोजन, चाचा-चाची, अपयश, चोट, घाव, विश्वासघात, असफलता, पालतू जानवर, नौकर, वाद-विवाद, कोर्ट से संबंधित कार्य, आँत, पेट, सीमा विवाद, आक्रमण, जल-थल सैन्य के बारे में जाना जा सकता है।

सप्तम भाव स्त्री से संबंधित, विवाह, सेक्स, पति-पत्नी, वाणिज्य, क्रय-विक्रय, व्यवहार, साझेदारी, मूत्राशय, सार्वजनिक, गुप्त रोग, राष्ट्रीय नैतिकता, वैदेशिक संबंध, युद्ध का विचार भी किया जाता है। इसे मारक भाव भी कहते हैं।

अष्टम भाव से मृत्यु, आयु, मृत्यु का कारण, स्त्री धन, गुप्त धन, उत्तराधिकारी, स्वयं द्वारा अर्जित मकान, जातक की स्थिति, वियोग, दुर्घटना, सजा, लांछन आदि इस भाव से विचार किया जाता है।

नवम भाव से धर्म, भाग्य, तीर्थयात्रा, संतान का भाग्य, साला-साली, आध्यात्मिक स्थिति, वैराग्य, आयात-निर्यात, यश, ख्याति, सार्वजनिक जीवन, भाग्योदय, पुनर्जन्म, मंदिर-धर्मशाला आदि का निर्माण कराना, योजना, विकास कार्य, न्यायालय से संबंधित कार्य जाने जाते हैं।

दशम भाव से पिता, राज्य, व्यापार, नौकरी, प्रशासनिक स्तर, मान-सम्मान, सफलता, सार्वजनिक जीवन, घुटने, संसद, विदेश व्यापार, आयात-निर्यात, विद्रोह आदि के बारे में जाना जाता है। इस भाव से पदोन्नति, उत्तरदायित्व, स्थायित्व, उच्च पद, राजनीतिक संबंध, जाँघें एवं शासकीय सम्मान आदि के बारे में जाना जाता है।

एकादश भाव से मित्र, समाज, आकांक्षाएँ, इच्छापूर्ति, आय, व्यवसाय में उन्नति, ज्येष्ठ भाई, रोग से मुक्ति, टखना, द्वितीय पत्नी, कान, वाणिज्य-व्यापार, परराष्ट्रों से लाभ, अंतरराष्ट्रीय संबंध आदि जाना जाता है।

द्वादश भाव से व्यय, हानि, दंड, गुप्त शत्रु, विदेश यात्रा, त्याग, असफलता, नेत्र पीड़ा, षड्यंत्र, कुटुंब में तनाव, दुर्भाग्य, जेल, अस्पताल में भर्ती होना, बदनामी, भोग-विलास, बायाँ कान, बाईं आँख, ऋण आदि के बारे में जाना जाता है

Thursday, June 17, 2010

Palmistry - and Marriage

हाथों की लकीरें और विवाह

 

 

मानव जीवन में विवाह बहुत बड़ी विशेषता मानी गई है। विवाह का वास्तविक अर्थ है- दो आत्माओं का आत्मिक मिलन। एक हृदय चाहता है कि वह दूसरे हृदय से सम्पर्क स्थापित करे, आपस में दोनों का आत्मिक प्रेम हो और हृदय मधुर कल्पना से ओतप्रोत हो।

जब दोनों एक सूत्र में बँध जाते हैं, तब उसे समाज 'विवाह' का नाम देता है। विवाह एक पवित्र रिश्ता है। इसकी सफलता व असफलता के बारे में हमे हस्तरेखाओं से काफी जानकारी मिलती है। हथेली पर स्थित विवाह रेखा पर यदि हम सूक्ष्मता से ध्यान दें तो स्थिति स्पष्ट हो जाती है।

हथेली पर स्थित विवाह रेखा : हथेली पर कनिष्ठा उँगली के नीचे बुध पर्वत क्षेत्र पर हथेली के बाहर से आती हुई स्पष्ट रेखा विवाह रेखा होती है, जो कि हृदय रेखा के पास स्थित होती है। उनकी अलग-अलग आकृति से विवाह कब, कैसे होगा व उसकी सफलता/असफलता के बारेमें ज्ञात होता है। हथेली पर ऐसी रेखाएँ दो या तीन भी हो सकती हैं।



ऐसे में जो रेखा सबसे अधिक लंबी, पुष्ट, सीधी एवं स्वच्छ हो, उसे विवाह रेखा माना जाता है। बाकी उसी पर्वत पर स्थित अन्य रेखाएँ इस बात का सूचक होती हैं कि या तो विवाह के पूर्व में उतने संबंधहोकर छूट जाएँगे अथवा विवाह के बाद उतने ही संबंध बनेंगे। यदि बुध पर्वत पर कोई रेखा न हो तथा हृदय रेखा के नीचे हो तो ऐसे व्यक्ति का जीवन भर विवाह नहीं होता। यह स्थिति स्त्रियों व पुरुषों दोनों पर लागू होती है।

दो विवाह योग : यदि विवाह रेखा के समानांतर ही एक और रेखा बुध पर्वत पर आ रही हो तो व्यक्ति के दो विवाह होते हैं।

जीवन भर कुँआरा रहने का योग : यदि विवाह रेखा पर एक से अधिक द्वीप हों तो वह व्यक्ति जीवन भर कुँआरा रहता है। यदि बुध पर्वत पर विवाह रेखा कई भागों में बँट जाए तो बार-बार सगाई टूटने का योग बनता है। यदि विवाह रेखा कनिष्ठा उँगली के दूसरे पोर तक चढ़ जाए तो वह व्यक्ति आजीवन अविवाहित रहता है।

असफल विवाह (तलाक योग) : यदि विवाह रेखा टूटी हुई हो तो जीवन के मध्य समय में या तो जीवनसाथी की मृत्यु हो जाएगी या तलाक हो जाएगा। यदि विवाह रेखा आगे जाकर कई भागों में विभक्त हो जाए तो वैवाहिक जीवन अत्यंत दुःखमय होता है।

विवाह से भाग्य उदय (सुखी विवाह) : यदि विवाह रेखा स्पष्ट, सीधी, सुंदर हो व हथेली पर भाग्य रेखा का उद्गम स्थान चंद्र पर्वत से हो, यदि भाग्य रेखा हृदय रेखा पर समाप्त हो व गुरु पर्वत पर क्रॉस हो और यदि विवाह रेखा स्पष्ट व लालिमा लिए हो तो उस व्यक्ति का वैवाहिक जीवन अत्यंत सुखमय होता है।

बेमेल विवाह : यदि शुक्र पर्वत जरूरत से ज्यादा विकसित हो, यदि सूर्य रेखा तथा विवाह रेखा आपस में कटती हों तो बेमेल विवाह होता है।

वैवाहिक जीवन में मृत्यु का योग : यदि विवाह रेखा जहाँ से झुक रही हो उस जगह क्रॉस का चिह्न हो तो जीवनसाथी की मृत्यु अकस्मात्‌ होती है। यदि विवाह रेखा नीचे की ओर झुककर हृदय रेखा को स्पर्श करने लगे तो जीवनसाथी की मृत्यु उस व्यक्ति से पहले होती है।

घरेलू झगड़े : जिस व्यक्ति के हाथों में सूर्य क्षेत्र से निकलकर टेढ़ी-सी रेखा हृदय रेखा तथा मस्तक रेखा को काटती हुई जीवनरेखा में जा मिले, ऐसे व्यक्ति विवाह के पश्चात यश और प्रसिद्धि प्राप्त करने के इच्छुक होते हैं लेकिन घरेलू झगड़ों के कारण उनकी यह इच्छा पूर्ण नहीं हो पाती है। जब सूर्य रेखा मस्तक रेखा से निकली हो और बीच-बीच में टूटी हो तो ऐसी रेखा वाले व्यक्ति दूसरों की बात में आकर झगड़ा करने के लिए तैयार रहते हैं।

संतान सुख : यदि विवाह रेखा को संतान रेखा काटती हो तो व्यक्ति का विवाह अत्यंत कठिनाई से होता है। विवाह रेखा पर बनी संतान रेखाएँ यदि महीन हों तो कन्या योग होता है और यदि गहरी हों तो पुत्र योग होता है। यदि मणिबंध रेखा कमजोर हो या शुक्र पर्वत अविकसित हो तो ऐसे व्यक्ति के जीवन में संतान सुख नहीं रहता है

Jyotish - Introduction

ज्योतिष एक नजर में

 

  • हर राशि का एक ग्रह होता है। वह उसका स्वामी कहलाता है।
    *
    मेष और वृश्चिक का स्वामी मंगल है।
    *
    वृषभ और तुला का स्वामी शुक्र है।
    *
    मिथुन और कन्या का स्वामी बुध है।

    *
    कर्क राशि का स्वामी चंद्र है।
    *
    सिंह राशि का स्वामी सूर्य है।
    *
    धनु राशि और मीन राशि का स्वामी गुरु है।
    *
    कुंभ तथा मकर का स्वामी शनि है।

    *
    हर ग्रह की एक राशि पृथ्‍वी का भौतिक गुण रखती है तथा दूसरा मानसिक गुणजैसे कन्या-भौतिक गुण तथा मिथुन-मानसिक गुण
    *
    वृषभ भौतिक एवं तुला मानसिक
    *
    वृश्चिक - भौतिक एवं मेष मानसिक
    *
    धनु - भौतिक तथा मीन मानसिक

    *
    मकर - भौतिक एवं कुंभ मानसिक
    *
    जन्मकुंडली के 12 स्थानों में लिखे अंक राशियों के होते हैं।
    *
    राशियाँ क्रमवार होती हैं। मेष से लेकर मीन तक।

    *
    कुंडली में चंद्रमा जिस अंक के साथ लिखा होता है वही आपकी राशि होती है। अर्थात उस अंक पर आने वाली राशि आपकी होगी।
    *
    कुंडली के बीच वाले स्थान को लग्न कहते हैं और उस स्थान पर अंकित आपका लग्न है।
    *
    जैसे अगर कुंडली के केंद्र में 2 लिखा है तो वृषभ लग्न होगा और चंद्रमा 11 अंक के साथ होगा तो राशि कुंभ होगी।

    *
    इसी केंद्र से 12 खानों या घरों की गणना होती है। घड़ी के उल्टे क्रम से संख्या आगे बढ़ेगी।
    *
    कुंडली के हर घर की विशेषता होती है।
    *
    चाहे केंद्र में अंक कोई भी हो पहला घर वही माना जाएगा।

    *
    कुंडली के प्रथम स्थान में अंकित लग्न के स्वामी को लग्नेश या केंद्रेश कहते हैं। जैसे अगर पहले स्थान में चार अंक लिखा है तो कर्क लग्न और लग्नेश चंद्र होगा। क्योंकि कर्क राशि का स्वामी चंद्र है।

    * 12
    स्थानों पर अंकित ग्रह अन्य स्थानों पर दृष्टि डालते हैं।
    *
    जैसे मंगल अपने स्थान से चौथे, सातवें और आठवें स्थान पर दृष्टि डालता है।
    *
    गुरु जहाँ स्थित है वहाँ से पाँचवीं, सातवीं और नौवीं दृष्टि डालता है।

    *
    प्रत्येक ग्रह जिस भाव में स्थित है उस भाव से सातवें भाव पर पूर्ण दृष्टि रखता है।
    *
    शनि तृतीय और दसवें भाव पर भी दृष्टि रखता है।
    *
    मंगल मकर राशि में उच्च का तथा इसकी नीच राशि कर्क है।
    *
    गुरु कर्क राशि में उच्च का एवं मकर राशि में नीच का होता है।

    *
    राहू-केतु छाया ग्रह माने जाते हैं। ये हमेशा एक-दूसरे के सामने यानी सातवें स्थान पर होते हैं।
    *
    जैसे अगर राहू केंद्र में होगा तो केतु सातवें स्थान में होगा। अगर केतु केंद्र में होगा तो राहू सातवें स्थान पर होगा।
    *
    जब कुंडली के सारे ग्रह राहू-केतु के बीच में आते हैं तो कालसर्प योग होता है।

जन्म पत्रिका क्या कहती है?

जन्म पत्रिका बनाना सीखने से पहले हमें जान लेना होगा कि जन्म पत्रिका क्या कहती है व इससे क्या जाना जा सकता है? जन्म पत्रिका वह है, जिसमें जन्म के समय किन ग्रहों की स्थिति किस प्रकार थी व कौन-सी लग्न जन्म के समय थी। जन्म पत्रिका में बारह खाने होते हैं, जो इस प्रकार हैं-उपरोक्त कुंडली में प्रथम भाव लिया है, उसमें जो भी नंबर हो उसे जन्म लग्न कहते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि उस भाव में 1 नंबर है तो मेष लग्न होगा, उसी प्रकार 2 नंबर को वृषभ, 3 नंबर को मिथुन, 4 को कर्क, 5 को सिंह, 6 को कन्या, 7 को तुला, 8 को वृश्चिक, 9 को धनु, 10 को मकर, 11 को कुंभ व 12 नंबर को मीन लग्न कहेंगे। इसी प्रकार पहले घर को प्रथम भाव कहा जाएगा, इसे लग्न भी कहते हैं।जन्म पत्रिका के अलग-अलग भावों से हमें अलग-अलग जानकारी मिलती है, इसे हम निम्न प्रकार जानेंगे-प्रथम भाव से हमें शारीरिक आकृति, स्वभाव, वर्ण चिन्ह, व्यक्तित्व, चरित्र, मुख, गुण व अवगुण, प्रारंभिक जीवन विचार, यश, सुख-दुख, नेतृत्व शक्ति, व्यक्तित्व, मुख का ऊपरी भाग, जीवन के संबंध में जानकारी मिलती है। इस भाव से जनस्वास्थ्य, मंत्रिमंडल की परिस्थितियों पर भी विचार जाना जा सकता है।द्वितीय भाव से हमें कुटुंब के लोगों के बारे में, वाणी विचार, धन की बचत, सौभाग्य, लाभ-हानि, आभूषण, दृष्टि, दाहिनी आँख, स्मरण शक्ति, नाक, ठुड्डी, दाँत, स्त्री की मृत्यु, कला, सुख, गला, कान, मृत्यु का कारण एवं राष्ट्रीय विचार में राजस्व, जनसाधारण की आर्थिक दशा, आयात एवं वाणिज्य-व्यवसाय आदि के बारे में जाना जा सकता है। इस भाव से कैद यानी राजदंड भी देखा जाता है।तृतीय भाव से भाई, पराक्रम, साहस, मित्रों से संबंध, साझेदारी, संचार-माध्यम, स्वर, संगीत, लेखन कार्य, वक्ष स्थल, फेफड़े, भुजाएँ, बंधु-बांधव। राष्ट्रीय ज्योतिष के लिए रेल, वायुयान, पत्र-पत्रिकाएँ, पत्र व्यवहार, निकटतम देशों की हलचल आदि के बारे में जाना जाता है।
चतुर्थ भाव में माता, स्वयं का मकान, पारिवारिक स्थिति, भूमि, वाहन सुख, पैतृक संपत्ति, मातृभूमि, जनता से संबंधित कार्य, कुर्सी, कुआँ, दूध, तालाब, गुप्त कोष, उदर, छाती, राष्ट्रीय ज्योतिष हेतु शिक्षण संस्थाएँ, कॉलेज, स्कूल, कृषि, जमीन, सर्वसाधारण की प्रसन्नता एवं जनता से संबंधित कार्य एवं स्थानीय राजनीति, जनता के बीच पहचान- यह सब देखा जाता है। पंचम भाव में विद्या, विवेक, लेखन, मनोरंजन, संतान, मंत्र-तंत्र, प्रेम, सट्टा, लॉटरी, अकस्मात धन लाभ, पूर्वजन्म, गर्भाशय, मूत्राशय, पीठ, प्रशासकीय क्षमता, आय भी जानी जाती है क्योंकि यहाँ से कोई भी ग्रह सप्तम दृष्टि से आय भाव को देखता है।षष्ठ भाव इस भाव से शत्रु, रोग, ऋण, विघ्न-बाधा, भोजन, चाचा-चाची, अपयश, चोट, घाव, विश्वासघात, असफलता, पालतू जानवर, नौकर, वाद-विवाद, कोर्ट से संबंधित कार्य, आँत, पेट, सीमा विवाद, आक्रमण, जल-थल सैन्य के बारे में जाना जा सकता है।सप्तम भाव स्त्री से संबंधित, विवाह, सेक्स, पति-पत्नी, वाणिज्य, क्रय-विक्रय, व्यवहार, साझेदारी, मूत्राशय, सार्वजनिक, गुप्त रोग, राष्ट्रीय नैतिकता, वैदेशिक संबंध, युद्ध का विचार भी किया जाता है। इसे मारक भाव भी कहते हैं।अष्टम भाव से मृत्यु, आयु, मृत्यु का कारण, स्त्री धन, गुप्त धन, उत्तराधिकारी, स्वयं द्वारा अर्जित मकान, जातक की स्थिति, वियोग, दुर्घटना, सजा, लांछन आदि इस भाव से विचार किया जाता है।नवम भाव से धर्म, भाग्य, तीर्थयात्रा, संतान का भाग्य, साला-साली, आध्यात्मिक स्थिति, वैराग्य, आयात-निर्यात, यश, ख्याति, सार्वजनिक जीवन, भाग्योदय, पुनर्जन्म, मंदिर-धर्मशाला आदि का निर्माण कराना, योजना, विकास कार्य, न्यायालय से संबंधित कार्य जाने जाते हैं।दशम भाव से पिता, राज्य, व्यापार, नौकरी, प्रशासनिक स्तर, मान-सम्मान, सफलता, सार्वजनिक जीवन, घुटने, संसद, विदेश व्यापार, आयात-निर्यात, विद्रोह आदि के बारे में जाना जाता है। इस भाव से पदोन्नति, उत्तरदायित्व, स्थायित्व, उच्च पद, राजनीतिक संबंध, जाँघें एवं शासकीय सम्मान आदि के बारे में जाना जाता है।एकादश भाव से मित्र, समाज, आकांक्षाएँ, इच्छापूर्ति, आय, व्यवसाय में उन्नति, ज्येष्ठ भाई, रोग से मुक्ति, टखना, द्वितीय पत्नी, कान, वाणिज्य-व्यापार, परराष्ट्रों से लाभ, अंतरराष्ट्रीय संबंध आदि जाना जाता है।द्वादश भाव से व्यय, हानि, दंड, गुप्त शत्रु, विदेश यात्रा, त्याग, असफलता, नेत्र पीड़ा, षड्यंत्र, कुटुंब में तनाव, दुर्भाग्य, जेल, अस्पताल में भर्ती होना, बदनामी, भोग-विलास, बायाँ कान, बाईं आँख, ऋण आदि के बारे में जाना जाता है


विदेश में कितने समय के लिए वास्तव्य होगा, यह जानने के लिए व्यय स्थान स्थित राशि का विचार करना आवश्यक होता है। व्यय स्थान में यदि चर राशि हो तो विदेश में थोड़े समय का ही प्रवास होता है।विदेश यात्रा के योग के लिए चतुर्थ स्थान का व्यय स्थान जो तृतीय स्थान होता है, उस पर गौर करना पड़ता है। इसके साथ-साथ लंबे प्रवास के लिए नवम स्थान तथा नवमेश का भी विचार करना होता है। परदेस जाना यानी नए माहौल में जाना। इसलिए उसके व्यय स्थान का विचार करना भी आवश्यक होता है। जन्मांग का व्यय स्थान विश्व प्रवास की ओर भी संकेत करता है। विदेश यात्रा का योग है या नहीं, इसके लिए तृतीय स्थान, नवम स्थान और व्यय स्थान के कार्येश ग्रहों को जानना आवश्यक होता है। ये कार्येश ग्रह यदि एक दूजे के लिए अनुकूल हों, उनमें युति, प्रतियुति या नवदृष्टि योग हो तो विदेश यात्रा का योग होता है। अर्थात उन कार्येश ग्रहों की महादशा, अंतरदशा या विदशा चल रही हो तो जातक का प्रत्यक्ष प्रवास संभव होता है। अन्यथा नहीं।
इसलिए इस बारे में सबसे महत्वपूर्ण स्थान होता है व्यय स्थान। विदेश यात्रा का निश्चित योग कब आएगा, इसलिए उपरोक्त तीनों भावों के कार्येश ग्रहों की महादशा-अंतरदशा-विदशा पर गौर करने पर सही समय का पता किया जा सकता है। विदेश में कितने समय के लिए वास्तव्य होगा, यह जानने के लिए व्यय स्थान स्थित राशि का विचार करना आवश्यक होता है। व्यय स्थान में यदि चर राशि हो तो विदेश में थोड़े समय का ही प्रवास होता है। व्यय स्थान में अगर स्थिर राशि हो तो कुछ सालों तक विदेश में रहा जा सकता है। यदि द्विस्वभाव राशि हो तो परदेस आना-जाना होता रहता है। इसके साथ-साथ व्यय स्थान से संबंधित कौन-से ग्रह और राशि हैं, इनका विचार करने पर किस देश में जाने का योग बनता है, यह भी जाना जा सकता है। सर्वसाधारण तौर पर यदि शुक्र का संबंध हो तो अमेरिका जैसे नई विचार प्रणाली वाले देश को जाने का योग बनता है। उसी तरह अगर शनि का संबंध हो तो इंग्लैंड जैसे पुराने विचारों वाले देश को जाना संभव होता है। अगर राहु-केतु के साथ संबंध हो तो अरब देश की ओर संकेत किया जा सकता है। तृतीय स्थान से नजदीक का प्रवास, नवम स्थान से दूर का प्रवास और व्यय स्थान की सहायता से वहाँ निवास कितने समय के लिए होगा यह जाना जा सकता है। 1. नवम स्थान का स्वामी चर राशि में तथा चर नवमांश में बलवान होना आवश्यक है। 2. नवम तथा व्यय स्थान में अन्योन्य योग होता है। 3. तृतीय स्थान, भाग्य स्थान या व्यय स्थान के ग्रह की दशा चल रही हो। 4. तृतीय स्थान, भाग्य स्थान और व्यय स्थान का स्वामी चाहे कोई भी ग्रह हो वह यदि उपरोक्त स्थानों के स्वामियों के नक्षत्र में हो तो विदेश यात्रा होती है। यदि तृतीय स्थान का स्वामी भाग्य में, भाग्येश व्यय में और व्ययेश भाग्य में हो, संक्षेप में कहना हो तो तृतियेश, भाग्येश और व्ययेश इनका एक-दूजे के साथ संबंध हो तो विदेश यात्रा निश्चित होती है

ॐ ज्योतिष केंद्र, पीपाड़ सिटी राजस्थान - पंडित ओमप्रकाश पुजारी

पश्चिमी राजस्थान में पीपर सिटी में पंडित ओमप्रकाश पुजारी , फलित ज्योतिष के प्रकांड पंडित हैं ।
यहाँ पर तमाम प्रकार के भारतीय संस्कार एवं ज्योतिष कार्यों का निष्पादन किया जाता हैं ।
ज्योतिष के क्षेत्र में पंडितजी ने कई नवाचार एवं आधुनिकतम प्रयाश किये हैं।
उनके प्रयासों से पीपर सिटी जेसे छोटे कसबे में कंप्यूटर द्वारा ज्योतिषीय गणना का शुभारम्भ हुवा।